सोशल मीडिया की सच्चाई: क्यों घटिया वीडियो वायरल होते हैं और अच्छे कंटेंट को नजरअंदाज किया जाता है?

RAJENDRA GEHLOT

सोशल मीडिया पर घटिया वीडियो क्यों वायरल होती हैं और अच्छी नहीं?

आजकल सोशल मीडिया की दुनिया कुछ अजीब-सी हो गई है। जहां एक तरफ लोग दिन-रात मेहनत करके ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक या मनोरंजक वीडियो बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ कोई बेतुकी हरकत, कोई बेहूदा डायलॉग, या कोई घटिया सा मज़ाक मिनटों में लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है। एक पल के लिए सोचिए – एक बच्चा कैमरे के सामने बेमतलब नाच रहा है, और वह वायरल हो जाता है। लेकिन कोई टीचर घंटों तैयारी करके किसी कांसेप्ट को समझा रहा है, और उसका वीडियो 100 व्यू भी पार नहीं करता।

आखिर ऐसा क्यों है? क्या वाकई दुनिया की सोच बदल गई है? या फिर इसके पीछे कुछ बड़ा सिस्टम काम कर रहा है? इस आर्टिकल में हम इसी गहराई तक जाएंगे और जानेंगे कि क्यों घटिया कंटेंट की वायरलिटी इतनी आसान होती जा रही है और अच्छा कंटेंट पीछे छूटता जा रहा है।

1. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का असली चेहरा

आपके मन में यह सवाल तो जरूर आता होगा कि क्या इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक या टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म खुद तय करते हैं कि कौन सा वीडियो ज्यादा लोगों को दिखाना है? जवाब है – हाँ, लेकिन ये तय किसी इंसान का मन नहीं करता, बल्कि एक एल्गोरिद्म करता है। एल्गोरिद्म यानी एक तरह का कम्प्यूटर प्रोग्राम जो यूजर के बिहेवियर को देखकर तय करता है कि उसे क्या पसंद है और क्या नहीं।

इस एल्गोरिद्म का मुख्य मकसद एक ही होता है – यूजर को प्लेटफॉर्म पर ज्यादा समय तक रोके रखना। अब सोचिए, अगर कोई वीडियो तुरंत आपको चौंका दे, हंसा दे या गुस्सा दिला दे – तो क्या आप उसे छोड़ पाएंगे? शायद नहीं।

यही कारण है कि एल्गोरिद्म सबसे पहले उस कंटेंट को प्रमोट करता है जिसमें ज्यादा "रीएक्शन" हो – भले वो रिएक्शन गुस्से का हो या हंसी का। और यही वो जगह है जहां घटिया वीडियो बाजी मार लेती हैं।

2. घटिया वीडियो में होता है “इमोशनल हुक”

मानव मनोविज्ञान बड़ा ही दिलचस्प है। अगर किसी चीज़ से हमें झटका लगता है – तो हम तुरंत उसे लेकर रिएक्ट करते हैं। सोशल मीडिया पर यही “इमोशनल हुक” काम करता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई महिला सड़क पर अजीब डांस कर रही हो या कोई शख्स सड़क पर डायलॉग बोलकर चिल्ला रहा हो – तो आप खुद को रोक नहीं पाएंगे उसे देखने से, शेयर करने से या उस पर कमेंट करने से।

यह इंसान की प्रकृति है – हम ड्रामा पसंद करते हैं, शांति नहीं। हम हलचल की तरफ भागते हैं, स्थिरता की तरफ नहीं। और घटिया वीडियो में यही ‘हलचल’ भरपूर होती है।

3. एल्गोरिद्म को फर्क नहीं पड़ता कंटेंट अच्छा है या बुरा

यह सबसे कड़वा सच है – सोशल मीडिया एल्गोरिद्म को इस बात से कोई मतलब नहीं कि आपका वीडियो कितना शिक्षाप्रद है या समाज के लिए कितना लाभदायक। उसे सिर्फ ये देखना है कि किस वीडियो पर ज्यादा एंगेजमेंट (Like, Comment, Share, Watch Time) मिल रहा है।

तो अगर कोई वीडियो भले ही बहुत ही बेवकूफी भरा हो लेकिन लोगों ने उस पर खूब कमेंट कर दिए – तो समझिए गेम बन गया। एल्गोरिद्म उसे और ज्यादा लोगों तक पहुंचाएगा क्योंकि उसे लगता है – “ये वीडियो लोगों को पसंद आ रहा है।”

अब इस सच्चाई को समझने के बाद यह सवाल उठता है – क्या अच्छा कंटेंट कभी वायरल हो सकता है? जवाब है – हाँ, लेकिन मुश्किल से।

4. ध्यान खींचना बन गया है पहला नियम

आज के समय में वीडियो बनाना एक आर्ट नहीं, एक साइंस बन गया है। अगर आपकी वीडियो के पहले 3 सेकंड में किसी का ध्यान नहीं खींचा – तो यूजर स्क्रॉल कर देगा। अब ध्यान खींचने के लिए लोग क्या करते हैं? – अजीब चेहरा बनाते हैं, तेज आवाज में चिल्लाते हैं, कपड़े ऐसे पहनते हैं कि लोग रुक जाएं। और यहीं से शुरू होती है “घटिया वीडियो की दुनिया”।

दूसरी तरफ, अगर कोई वीडियो सीधा-सादा, ज्ञानपूर्ण और बिना शोरगुल के है – तो वो पहले सेकंड में ही स्क्रॉल हो जाता है। और एल्गोरिद्म उसे नजरअंदाज कर देता है।

5. ऑडियंस की जिम्मेदारी भी है

हमें यह मानना होगा कि घटिया कंटेंट वायरल होने के पीछे हम, यानी ऑडियंस भी जिम्मेदार हैं। जब हम किसी अजीबो-गरीब हरकत पर हंसते हैं, शेयर करते हैं और उस पर चर्चा करते हैं – तो हम उसे और ताकत देते हैं।

हम लोग खुद अपनी उंगलियों से अच्छे कंटेंट को दबा देते हैं, और घटिया चीज़ों को ऊपर ले आते हैं। किसी ज्ञानवर्धक वीडियो को देखने के लिए हमारे पास समय नहीं होता, लेकिन किसी नाचते हुए लड़के की रील्स देखकर हम अपना पूरा वक्त बर्बाद कर देते हैं।

6. शॉर्ट फॉर्म कंटेंट की भूमिका

Reels, Shorts, और TikTok जैसे शॉर्ट वीडियो फॉर्मेट ने इस पूरी स्थिति को और बिगाड़ दिया है। अब लोग 15 सेकंड में ही कुछ ऐसा करने की कोशिश करते हैं जिससे वे वायरल हो जाएं। यह कम समय, अधिक ध्यान और झटपट रिएक्शन की संस्कृति है।

इसमें सीखने, समझने, और कुछ सोचने का कोई मौका नहीं होता। बस देखकर हंस दो, या गुस्सा कर दो – और वीडियो वायरल।

7. कंटेंट क्रिएटर्स की मजबूरी

एक कंटेंट क्रिएटर को अगर वायरल होना है, तो उसे एल्गोरिद्म की चाल समझनी होती है। अब यहां दो रास्ते हैं – या तो वह घटिया कंटेंट बना ले जो वायरल हो जाए, या अच्छा कंटेंट बनाए लेकिन उसकी स्पीड धीमी हो।

दुख की बात यह है कि आज कई ऐसे समझदार और टैलेंटेड लोग मजबूरी में घटिया टाइटल, भड़कीले थंबनेल और ओवरएक्टिंग का सहारा लेने लगे हैं – क्योंकि अच्छी चीज़ें वायरल नहीं होतीं।

ये पूरी व्यवस्था एक साइकिल बन चुकी है, जहां ऑडियंस, एल्गोरिद्म और क्रिएटर – तीनों ही इस सिस्टम को चला रहे हैं, और इसे तोड़ना इतना आसान नहीं।

सोशल मीडिया पर घटिया वीडियो की वायरलिटी का रहस्य

जब कोई वीडियो देखकर आपको गुस्सा आए, शर्म आए, हंसी छूट जाए या आपको खुद पर हंसी आ जाए कि आपने यह वीडियो आखिर क्यों देखा – तो समझ जाइए, वही वीडियो वायरल होगा। यह जितना कड़वा सच है, उतना ही सटीक भी।

सोशल मीडिया अब केवल “कंटेंट की क्वालिटी” से नहीं चलता, बल्कि “इमोशनल रिएक्शन” की मात्रा से चलता है। कंटेंट कितना भी घटिया हो, अगर वो दर्शक को झटका देता है – वो एल्गोरिद्म में टॉप पर जाएगा।

1. घटिया वीडियो बनाने की साइकोलॉजी

आपने गौर किया होगा कि कई वीडियो में कंटेंट से ज्यादा “हरकतें” होती हैं। ऐसे वीडियो बनाने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि एल्गोरिद्म को “ओवरएक्टिंग” पसंद है। ये वीडियो बनाने वाले लोग कुछ खास ट्रिक्स अपनाते हैं:

  • शुरुआत के 3 सेकंड में चौंकाने वाली चीज़ दिखाना
  • थंबनेल में भड़कीली इमेज और लाल पीले रंग
  • टाइटल में “OMG”, “देखते ही दंग रह जाओगे”, “लास्ट तक जरूर देखना” जैसे शब्द
  • बहुत तेज़ आवाज या अश्लील मज़ाक
  • चौंकाने वाली लेकिन झूठी जानकारी

इन सभी तकनीकों का मकसद एक ही होता है – यूज़र को रुकवाना, उलझाना और अंत तक रोकना।

2. “शॉक वैल्यू” का पावर

आप किसी सड़क पर चल रहे हों और अचानक कोई बिना कपड़ों के चिल्लाता दिखे – क्या आप रुकेंगे? 99% लोग रुकेंगे, देखेंगे, वीडियो बनाएंगे। यही है शॉक वैल्यू। सोशल मीडिया पर यह एक बम की तरह काम करती है।

शॉक वैल्यू वाले वीडियो हमेशा तेज़ी से वायरल होते हैं क्योंकि लोग उन्हें देखकर तुरंत रिएक्ट करते हैं। रिएक्शन का मतलब है – शेयर, कमेंट, लाइक या डिसलाइक। सोशल मीडिया को इससे फर्क नहीं पड़ता कि रिएक्शन पॉजिटिव है या नेगेटिव, बस रिएक्शन होना चाहिए।

इसलिए जो लोग जानबूझकर घटिया या विवादास्पद चीजें पोस्ट करते हैं, वे जानते हैं कि वे एल्गोरिद्म को “हैक” कर रहे हैं। उन्हें पता है कि जितना ज्यादा गुस्सा, उतनी ज्यादा पब्लिसिटी।

3. विवाद का नाटक और पब्लिसिटी स्टंट

कुछ लोग जानते हैं कि अगर वो सोशल मीडिया पर किसी धार्मिक, जातीय या सामाजिक मुद्दे पर कोई विवादास्पद बात कहेंगे – तो लोग टूट पड़ेंगे। और यहीं से शुरू होता है "हेट मार्केटिंग" का खेल।

विवाद पैदा करने वाले जानबूझकर ऐसी वीडियो डालते हैं जिनसे किसी न किसी वर्ग की भावना आहत हो। इससे कॉमेंट्स की बाढ़ आती है, लोग बहस करते हैं, वीडियो वायरल हो जाती है। और अंत में – वही शख्स एक बड़ा चेहरा बन जाता है। चाहे निगेटिव तरीके से ही क्यों न हो।

यह पूरी तरह एक स्ट्रेटजी है। एक योजना, जिसके तहत वो एल्गोरिद्म को मजबूर करता है उसे प्रमोट करने के लिए। क्योंकि जिस वीडियो पर सबसे ज्यादा एक्टिविटी है – वह सिस्टम के हिसाब से सबसे ज्यादा "इंटरस्टिंग" है।

4. केस स्टडी: “चायवाले का डांस”, “गर्ल्स गैंग का रोड डांस”, “बिन सिर-पैर की मोटिवेशनल लाइनें”

अब बात करते हैं कुछ रियल उदाहरणों की। आपने यूट्यूब पर देखा होगा – एक चायवाला स्टॉल के सामने अजीब सा डांस कर रहा है, कैमरा खुद ही रिकॉर्ड कर रहा है, और कुछ सेकंड में 5 मिलियन व्यूज़ हो जाते हैं।

फिर देखिए कुछ लड़कियां जो सड़क पर “गर्ल्स गैंग डांस” के नाम पर सार्वजनिक जगहों पर शोर मचाती हैं। उनके कपड़े, एक्सप्रेशन और ओवरएक्टिंग सब कुछ वायरलिटी के फॉर्मूले में फिट बैठते हैं।

या फिर कोई शख्स 15 सेकंड में कुछ भी बोले जा रहा है – “तू अगर गिरा तो खुद उठ, दुनिया ताली नहीं मारेगी” – बिना संदर्भ, बिना भाव, सिर्फ ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना। और उस पर फायर इफेक्ट, मोटिवेशनल म्यूजिक – वायरल होने का तैयार पैकेज।

इन सभी वीडियो में क्वालिटी कंटेंट नहीं है। लेकिन वो “तेज़ रिएक्शन” पैदा करते हैं, जो सोशल मीडिया का पेट भरता है।

5. गॉसिप और स्कैंडल्स का खेल

घटिया वीडियो का एक बड़ा हिस्सा होता है – गॉसिप। सेलिब्रिटी की फालतू बातें, झूठे ब्रेकअप, किसी का बाथरूम वीडियो लीक, किसी की ड्रेस खिसकी, किसी का विवादित बयान।

ऐसे वीडियो हमेशा ट्रेंड में रहते हैं क्योंकि लोग दूसरों की जिंदगी में ताक-झांक करना पसंद करते हैं। हमें जो बातें निजी रहनी चाहिए, वही हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं।

और यही वो मौका होता है जब “गॉसिप क्रिएटर्स” अपने घटिया वीडियो से करोड़ों व्यू कमा लेते हैं।

6. वायरल का गणित: एंगेजमेंट + टाइम = ग्रोथ

सोशल मीडिया के लिए वायरलिटी सिर्फ व्यूज़ नहीं है। वह देखता है कि:

  • कितने लोगों ने वीडियो पर रुका हुआ समय बिताया?
  • कितनों ने शेयर किया?
  • कितने लोगों ने कमेंट किया, चाहे वो गाली हो या तारीफ?

इस गणित में "गुणवत्ता" कोई पैरामीटर ही नहीं है। यानी अगर एक वीडियो सिर्फ 5 सेकंड का है लेकिन लोग 4 बार उसे रिप्ले कर रहे हैं, तो वह ज्यादा वायरल होगा – भले ही वह वीडियो केवल हंसने लायक ही क्यों न हो।

सोचिए, क्या कभी किसी वैज्ञानिक रिसर्च, किसी कविता या गहन सामाजिक मुद्दे पर आधारित वीडियो को आपने वायरल होते देखा है? शायद ही कभी। क्योंकि वो न “झटका” देते हैं, न “मज़ा”।

7. बच्चों और किशोरों का प्रभाव

वायरल वीडियो के दर्शकों में एक बड़ा हिस्सा होता है – बच्चे और किशोर। और यही वर्ग सबसे ज्यादा एक्टिव होता है। वे किसी भी मज़ेदार, बेहूदा या ऊटपटांग वीडियो को तुरंत शेयर करते हैं, रीमेक बनाते हैं और कमेंट्स में लड़ाई तक कर लेते हैं।

अब सोचिए, क्या यही वर्ग किसी डॉक्यूमेंट्री या एजुकेशनल वीडियो को बार-बार देखेगा? शायद नहीं। इसलिए सोशल मीडिया की दिशा वही है जो सबसे ज्यादा एक्टिव यूज़र्स तय करते हैं – और वो हैं युवा, जो जल्दी रिएक्ट करते हैं और जल्दबाज़ी में चीज़ें शेयर करते हैं।

अच्छे कंटेंट को वायरल कैसे करें और सोशल मीडिया सिस्टम का हल

अब तक हमने समझा कि सोशल मीडिया की दुनिया में घटिया वीडियो क्यों छा जाती हैं और अच्छी वीडियो किन मुश्किलों में घिसटती हैं। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल उठता है – क्या इस सिस्टम को बदला जा सकता है? क्या हम अच्छा कंटेंट बनाकर भी वायरल हो सकते हैं? क्या मेहनत और गुणवत्ता की कोई वैल्यू है या यह प्लेटफॉर्म सिर्फ ड्रामा का मेला बन चुका है?

इस भाग में हम इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढेंगे, साथ ही कुछ ऐसी रणनीतियों पर भी चर्चा करेंगे जो कंटेंट क्रिएटर को नैतिक रूप से सफल बना सकती हैं – बिना घटियापन के।

1. अच्छा कंटेंट भी वायरल हो सकता है – लेकिन समझदारी से

सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि अच्छा कंटेंट वायरल नहीं होता – ये पूरी तरह गलत है। होता है, लेकिन उसे सही तरीके से पेश करना पड़ता है। इसका मतलब है:

  • हुकिंग थंबनेल: भले कंटेंट शिक्षाप्रद हो, लेकिन थंबनेल में उत्सुकता जगाने वाली इमेज होनी चाहिए।
  • पहले 3 सेकंड में सवाल या झटका: “क्या आप जानते हैं कि...”, “99% लोग इस बात को नजरअंदाज करते हैं…” जैसे ओपनिंग लाइन से व्यूअर को रोका जा सकता है।
  • स्टोरीटेलिंग का फॉर्मेट: लोग कहानी सुनना पसंद करते हैं। तो अगर कोई ज्ञान भी कहानी में बंधा हो, तो वो जल्दी जुड़ता है।
  • सीमित लेकिन स्ट्रॉन्ग एडिटिंग: ज़रूरत से ज़्यादा इफेक्ट्स घटिया वीडियो की पहचान बन चुके हैं। लेकिन हल्के-फुल्के विजुअल्स अच्छे कंटेंट को भी मज़ेदार बना सकते हैं।

इसका मतलब यह नहीं कि आप फेक ड्रामा करें – बल्कि यही ड्रामा अच्छे कंटेंट में नैतिक रूप से कैसे जोड़ा जाए, यही कला है।

2. एल्गोरिद्म को नैतिक तरीके से “हैक” करना

एल्गोरिद्म एक रोबोट है, इंसान नहीं। यह आपके कंटेंट को नहीं, उस पर आने वाले “रिएक्शन” को देखता है। अगर आप चाहते हैं कि अच्छा कंटेंट ज्यादा लोगों तक पहुंचे, तो आपको इन तत्वों का ध्यान रखना होगा:

  • Call to Action: “अगर आपको यह जानकारी पसंद आ रही हो तो शेयर करना न भूलें।”
  • Engaging Questions: “आपका क्या मानना है?”, “क्या आपने ऐसा कुछ महसूस किया है?” – ऐसे सवाल कॉमेंट्स बढ़ाते हैं।
  • सीरीज़ बनाएं: लंबी जानकारी को टुकड़ों में पेश करें – जैसे पार्ट 1, पार्ट 2 – इससे व्यूअर रिटेंशन और सब्सक्राइबर दोनों बढ़ते हैं।
  • शॉर्ट्स से शुरुआत: लंबे वीडियो बनाने से पहले शॉर्ट्स के जरिए एल्गोरिद्म में एंट्री लें।

यानी आपको एल्गोरिद्म के नियमों को समझना होगा – और फिर उसी के हथियार से अच्छी जानकारी को फैलाना होगा।

3. वायरल वीडियो से कमाई का कड़वा सच

लोगों को लगता है कि वायरल वीडियो = लाखों रुपए। लेकिन सच इससे बहुत अलग है। वायरल वीडियो से पैसे आने के लिए सिर्फ व्यूज़ नहीं, और भी चीजें जरूरी हैं:

  • मोनेटाइजेशन ऑन होना चाहिए: यूट्यूब पर कमाई तभी होती है जब चैनल मोनेटाइज़्ड हो। टिकटॉक या इंस्टाग्राम पर ये सीमित है।
  • Audience Quality: अगर आपके वीडियो सिर्फ 10-15 सेकंड के हैं और बिना टारगेट ऑडियंस के हैं – तो उनका CPM (Cost Per 1000 Views) बेहद कम होता है।
  • सिर्फ वायरलिटी नहीं, ब्रांड वैल्यू जरूरी है: अगर आपका कंटेंट ब्रांडिंग लायक नहीं है, तो कंपनियां विज्ञापन देने से बचेंगी। घटिया वायरलिटी का कोई मार्केट वैल्यू नहीं होता।

कई लोग करोड़ों व्यूज़ के बाद भी केवल ₹2000-₹3000 कमाते हैं, जबकि एक अच्छा और नॉलेज आधारित चैनल हर हज़ार व्यूज़ पर ₹100-₹200 तक कमा सकता है।

4. घटिया कंटेंट की सीमा तय है, अच्छा कंटेंट अमर है

आपने देखा होगा – घटिया कंटेंट कुछ समय के लिए ट्रेंड करता है, फिर गायब हो जाता है। लेकिन जो अच्छा कंटेंट होता है, वो सालों तक चलता है, गूगल में रैंक करता है, और समय के साथ उसका मूल्य बढ़ता है।

घटिया वीडियो के व्यूज़ आज हैं, कल नहीं। लेकिन अच्छा वीडियो बार-बार देखा जाता है, बार-बार शेयर किया जाता है। यही लॉन्ग टर्म ग्रोथ है।

5. दर्शकों को भी बदलना होगा

इस पूरी स्थिति का समाधान तभी संभव है जब दर्शक अपनी मानसिकता बदलें। जब हम खुद निर्णय लें कि हमें किसे सपोर्ट करना है – तब ही अच्छा कंटेंट ऊपर आएगा।

हर बार जब हम किसी घटिया वीडियो को शेयर करते हैं – हम उस कंटेंट को ताकत देते हैं। लेकिन जब हम एक मेहनती व्यक्ति के वीडियो को लाइक, शेयर और कॉमेंट करते हैं – हम एक संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जो सीखने, समझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

6. कंटेंट क्रिएटर्स का आत्मबल

अगर आप कंटेंट क्रिएटर हैं तो यह समझ लीजिए कि रास्ता लंबा है, लेकिन स्थायी है। घटिया वीडियो बनाकर आप एक रात में मशहूर हो सकते हैं – लेकिन आपकी इज्ज़त नहीं बनेगी।

जब आप अच्छा, सच्चा और मूल्यवान कंटेंट बनाते हैं – तो आपको एक ऐसी ऑडियंस मिलती है जो आपको लंबे समय तक याद रखती है। यही असली जीत है – नाम कमाना, नहीं तो बदनाम तो आजकल हर कोई हो रहा है।

7. क्या सोशल मीडिया सिस्टम को बदला जा सकता है?

बिलकुल बदला जा सकता है – लेकिन उसके लिए जरूरत है एक सामूहिक प्रयास की। हमें चाहिये:

  • अच्छे क्रिएटर्स को सपोर्ट: लाइक, शेयर, सब्सक्राइब करें और दूसरों को भी प्रेरित करें।
  • कम्युनिटी गाइडलाइन्स की सख्ती: सोशल मीडिया कंपनियों को बेकार कंटेंट पर सख्त एक्शन लेना होगा।
  • एजुकेशनल रील्स का प्रोत्साहन: छोटे वीडियो में भी ज्ञान बांटने वालों को प्रमोट करना होगा।
  • नए एल्गोरिद्म मॉडल: जहां सिर्फ रिएक्शन नहीं, क्वालिटी और वैल्यू को प्रमोट किया जाए।

ये एक लंबी प्रक्रिया है, लेकिन अगर एक-एक व्यक्ति भी जिम्मेदारी से काम करे, तो बदलाव जरूर होगा।

निष्कर्ष

सोशल मीडिया की यह दौड़ आज की पीढ़ी को एक ऐसा आईना दिखा रही है जिसमें दिखता है – “क्या चीज़ें हमें सच में आकर्षित करती हैं?”

अगर हमें समाज को बेहतर बनाना है तो हमें सिर्फ अच्छी किताबें नहीं, अच्छे वीडियो भी देखने होंगे। और जो लोग अच्छा बना रहे हैं, उन्हें मंच देना होगा। वरना कल का इंटरनेट केवल ऊल-जुलूल, भटकाव और अधकचरेपन का समुद्र बन जाएगा जिसमें सच्चाई की आवाज़ डूब जाएगी।

अब फैसला आपके हाथ में है – आप क्या देखना चाहते हैं? एक ऐसा वीडियो जो आपको 15 सेकंड हँसाए, या एक ऐसा वीडियो जो आपको जिंदगी भर कुछ सिखा जाए?

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